तुम चले गए (A Hindi Poem)

साथ चल रहे थे एक राह पर,
तुम चले गए यूँ मूँह मोड़ कर,
सोचा नहीं, क्या बीतेगी मुझ पर,
निकल लिए यूँ अकेला छोड़ कर ।

माना जाने की ज़िद थी बहुत,
थोड़ी दूर और सही, साथ चले आते,
कुछ मैं कहता, कुछ तुम कहते,
चलते चलते दूर कहीं निकल जाते ।

बातों बातों में शायद पता चलता,
हँस के भी, क्यूँ तुम इतने उदास थे,
समझ ना सके तुम्हारी व्यथा,
शायद हम इतने ना पास थे ।

देखो, जो तुम चले गए, सब कुछ कितना वीरान पड़ा,
भीड़ है, मेले हैं, पर लगता सब सुनसान बड़ा ।
शून्य सा है जीवन, सब कुछ कितना ठहरा सा है
न जाने कब भरेगा, ये घाव इतना गहरा सा है ।