तुम चले गए (A Hindi Poem)

साथ चल रहे थे एक राह पर,
तुम चले गए यूँ मूँह मोड़ कर,
सोचा नहीं, क्या बीतेगी मुझ पर,
निकल लिए यूँ अकेला छोड़ कर ।

माना जाने की ज़िद थी बहुत,
थोड़ी दूर और सही, साथ चले आते,
कुछ मैं कहता, कुछ तुम कहते,
चलते चलते दूर कहीं निकल जाते ।

बातों बातों में शायद पता चलता,
हँस के भी, क्यूँ तुम इतने उदास थे,
समझ ना सके तुम्हारी व्यथा,
शायद हम इतने ना पास थे ।

देखो, जो तुम चले गए, सब कुछ कितना वीरान पड़ा,
भीड़ है, मेले हैं, पर लगता सब सुनसान बड़ा ।
शून्य सा है जीवन, सब कुछ कितना ठहरा सा है
न जाने कब भरेगा, ये घाव इतना गहरा सा है ।

शंख नाद (A poem in Hindi)

यह कैसा आ गया है मंजर
भय का माहौल है सीने के अंदर
घर में विचित्र सन्नाटा है
अगर निकलो बाहर तो बाधा है

धरती ख़ामोश पथराई है
घनघोर उदासी छायी है
जीव जंतु पक्षी पेड़ सब पुछ रहे
मानव क्यूँ हमें तुम भूल गए

कब मनुष्य जिया ऐसा अकेला था
चारों तरफ़ उसके तो मेला था
भाई से भाई दूर हुए
नियति के आगे मजबूर हुए

गलियाँ सूनी, सड़कें सुनी
क़स्बे शहर वीरान पड़े
है जीवन गति ठहरा हारा
मानव मानव से दूर खड़े

लेकिन है ये अंत नहीं
थोड़ी सी विवशता ही सही
यह रात लम्बी है काली है
मत भूलो आगे सूरज की लाली है

माना भीषण यह रण होगा
लेकिन सोचो वह क्या क्षण होगा
शंख नाद धरा पर गूँजेगा
मृत्यु पर जीवन का जय होगा